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हम सबने कभी न कभी कलम और स्याही का जादू महसूस किया है—वो अहसास जो डिजिटल दुनिया आने के बाद कहीं पीछे छूट गया। यह कहानी है स्याही और कलम की, जो एक-दूसरे से बरसों बाद मिलते हैं और पुरानी यादों में खो जाते हैं।
जब स्याही बोली कलम से
एक दिन, स्याही बोली कलम से,
“Long time no see, my friend.”
“मुझे वो पुराने दिन बहुत याद आते हैं जब हम हर रोज़ मिला करते थे… और वो खास दिन भी, जब हम एक दिन में कई बार मिले थे।”
स्याही अंग्रेज़ी में बोली क्योंकि उसे जताना था कि वह वक़्त के साथ चल सकती है और चल रही है।
कलम ने स्याही की तरफ़ बहुत प्यार से देखा और कहा —
“आजकल कोई मुझे मेरी जगह से उठाता ही नहीं… और बढ़ती उम्र के कारण मैं खुद चलकर तुम्हारे पास आ भी नहीं सकता।”
उन दोनों की उदासी और एक-दूसरे के लिए तरसना साफ नज़र आ रहा था।
पुरानी यादों का दरवाज़ा खुला
कलम looked far into the sunlight seeping in through the open window. A gentle, cool winter breeze made him shiver and his attention went back to his dear sakhi, स्याही.
वह बोला,
“स्याही, तुम्हें याद है वो दिन? जिस दिन हमारा पलाश पहली बार एक love letter लिख रहा था?”
स्याही शर्मा कर बोली,
“वो दिन कैसे भूल सकती हूँ मैं!
तुम वही लिख रहे थे जो तुम मुझसे कहना चाहते थे… और पलाश को लगा जैसे उसके अंदर से creativity की नदी बह चली हो। कितना नादान था न अपना पलाश!”
एक छोटी सी गलतफहमी
स्याही का जवाब सुनकर कलम हक्का-बक्का सा हो गया। इधर-उधर देखते हुए बोला,
“ऐसा तो कुछ नहीं था। मैंने वही लिखा जो पलाश लिखना चाहता था।”
स्याही कुछ देर चुप रही, फिर मुस्कुराकर बोली,
“अच्छा? ऐसा था? मैं पगली ऐसे ही इतने बरस तुम्हारा इंतजार करती रही।”
कलम की दबी हुई भावनाएँ
कलम अपना आत्मसम्मान बचाना चाहता था। उसे यह भी नहीं जताना था कि वह स्याही से अपने दिल की बात कहने से डरता था—आज भी डरता है।
इसलिए वह बोला,
“अरे स्याही, वो क्या है न… कुछ समय बाद पलाश ने ball pen से लिखना शुरू कर दिया था। बस इसलिए मैं तुमसे मिल नहीं पाया।
आज उसके मन में क्या आया कि उसने मुझे दराज़ से निकाला, अच्छे से साफ किया और तुम्हारे पास रख दिया। पता नहीं आज उसे ये क्या सुझा?”
स्याही मंद-मंद मुस्कुराई और फिर धीरे-धीरे अपनी पुरानी उदासी में डूब गई।
सोचने वाली बात
कलम और स्याही की ये मुलाकात सिर्फ दो वस्तुओं की कहानी नहीं—यह हमारे उन दिनों की याद है जब हम भावनाएँ हाथ से लिखा करते थे। शायद पलाश की तरह हमें भी कभी-कभी अपनी पुरानी यादों की दराज़ खोलनी चाहिए… ताकि कोई स्याही, कोई कलम, फिर से मुस्कुरा सके।










8 Responses
Such nostalgic to read this and it brought back all My memories using Ink and Pen. Very creative writ.
Thank you Amol ji!
Your writing concept is impressive! The way you blend languages and expressions is truly admirable 😊. Keep inspiring!?
Dhanyawaad Sir.
बहुत बढ़िया …
Thank you M’am!
Oh… I am missing my ink pen already…
Time to locate it and start using it!